बस्तर में रेल सुविधओं की क्या है वास्तविकता

बस्तर मे रेल सुविधाओ की हकीकत 

हीराखंड एक्सप्रेस अब नए L H B कोच के साथ चलने लगी है, और बस्तर के रेल इतिहास में एक और पन्ना जुड़ गया। दिनांक 10 सितंबर 2021 को स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस नए  रेल रेक को हरी झंडी दिखाकर भुवनेश्वर की ओर रवाना किया ।जगदलपुर से भुवनेश्वर तक चलने वाली इस हीराखंड एक्सप्रेस को L H B कोच मिलना किसी उपलब्धि से कम नहीं है, क्योंकि बस्तर के साथ रेल सुविधाओं के नाम पर सौतेले व्यवहार का  लंबा इतिहास रहा है, लेकिन अन्य कई महत्वपूर्ण एक्सप्रेस ट्रेनों से पहले हीराखंड को L H B कोच मिलना एक सुखद आश्चर्य से कम भी नहीं है।


       ऐतिहासिक रूप से बस्तर क्षेत्र सार्वजनिक परिवहन के मामले में पिछड़ा ही रहा है। कुछ तो भौगोलिक दुर्गमता और व्यापक रूप से जनप्रतिनिधियों की उदासीनता एक प्रमुख कारण रही है। कमोवेश वर्तमान प्राप्त रेल सुविधाएं में उड़ीसा के जनप्रतिनिधियों के व्यापक प्रयास का भी परिणाम हैं।हालांकि विगत दशक से स्थानीय जनप्रतिनिधि भी समस्यों और सुविधाओं को लेकर मुखर हुए हैं,।
          वर्तमान रेल सुविधाएं भी इस क्षेत्र के लिए ऊंट के मुंह में जीरा, से ज्यादा कुछ नहीं है। और यह सुविधाएं भी क्षेत्रवासियों को एक लंबे संघर्ष के बाद मिली है।
       वर्तमान K.K. लाइन का इतिहास 60 और 70 दशक का है, जब जापानी और भारतीय इंजीनियरों और हजारों रेल कर्मचारियों के अथक प्रयास से इस दुर्गम क्षेत्र में रेलों का संचालन संभव हुआ, किंतु यह क्षेत्र के विकास या रेल सुविधाओं के विस्तार के लिए नहीं हुआ, बल्कि उस कीमती धातु के दोहन के लिए हुआ, जिसकी जरूरत जापान को थी। उस समय से 2009 तक यात्री सुविधाओं के नाम पर मात्र एक पैसेंजर ट्रेन थी, जो विशाखापट्टनम से किरंदुल के मध्य संचालित होती थी। जबकि लौह अयस्क के परिवहन से रेल मंत्रालय इस क्षेत्र से अरबों रुपए की सालाना आय प्राप्त करता है।

       सन 2009 और 10 में स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने रेल सुविधाओं के विस्तार के लिए एक व्यापक जन आंदोलन चलाया, जन आंदोलन से अयस्क परिवहन में बाधा आई, परिणाम स्वरूप रेल प्रशासन को लाखों रुपए की हानि उठानी पड़ी। इस जन आंदोलन के परिणाम स्वरुप रेल प्रशासन को यात्री सुविधाओं के विस्तार के लिए मजबूर होना पड़ा।
        दिसंबर 2010 में हीराखंड एक्सप्रेस का संचालन प्रारंभ हुआ, इसके बाद वर्ष 2011-12 के बजट में कोलकाता से जगदलपुर और दुर्ग से जगदलपुर चलने वाली 2 ट्रेनों की घोषणा भी की गई, और जल्द ही इन्हें शुरू भी कर दिया गया। कोरोना से पहले ( मार्च 2020) कोलकाता से जगदलपुर समलेश्वरी एक्सप्रेस भुवनेश्वर से जगदलपुर तक हीराखंड एक्सप्रेस विशाखापटनम से किरंदुल तक लाइट एक्सप्रेस और दिन में चलने वाली पैसेंजर ट्रेन साथ ही जगदलपुर से राउरकेला तक चलने वाली राउरकेला एक्सप्रेस का नियमित संचालन किया जा रहा था।
          उपरोक्त रेल सुविधाओं के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता, कि बस्तर अंचल पूरी तरह से रेल सुविधाओं से जुड़ गया है, क्योंकि यह क्षेत्र प्रशासनिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक गतिविधियों में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पर ज्यादा निर्भर है। जब तक रायपुर के लिए रेल सुविधाएं नहीं उपलब्ध होती तब तक यह क्षेत्र रेल सुविधाओं के मामले में पिछड़ा ही रहेगा। इस पक्ष का एक सुखद पहलू यह माना जा सकता है, कि दल्ली राजहरा से जगदलपुर के मध्य रेल लाइन का निर्माण प्रगति पर है। और अंतागढ़ (केवटी) तक रेलों का संचालन प्रारंभ हो चुका है। रेल मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2024 तक यह रेल मार्ग पूरा हो जाएगा, और जगदलपुर रेल द्वारा रायपुर से सीधे जुड़ जाएगा।
        वर्तमान परिस्थितियों में कुछ सामान्य प्रयास के द्वारा रेल सुविधाओं का विस्तार आसानी से किया जा सकता है, जैसे दिल्ली तक चलने वाली ट्रेनों के लिए स्पेशल बोगी वर्तमान में चलने वाली ट्रेनों में जोड़ा जाए, और विजयानगरम, विशाखापट्टनम, राउरकेला और भुवनेश्वर से उन ट्रेनों के साथ जोड़ दिए जाएं जो दिल्ली या अन्य शहरों की ओर जाती हैं। कोविड-19 में बंद पड़ी रेलों को जल्द से जल्द शुरू किया जाए। बस्तर के प्रमुख स्टेशनों पर यात्री सुविधाओं में वृद्धि की जाए, किरंदुल से विशाखापट्टनम तक रेल मार्ग के दोहरीकरण का कार्य जल्द से जल्द पूरा किया जाए, साथ ही दल्ली राजहरा जगदलपुर रेल लाइन को प्राथमिकता के आधार पर जल्द से जल्द पूरा किया जाए, बस्तर से हैदराबाद के बीच रेल मार्ग की संभावनाओं की तलाश की जाए, हिराखण्ड के अलावा बाकी ट्रेनों के पुराने कोच को L H B कोच से तत्काल बदले जाएं।
       वर्तमान रेल सुविधाओं में विस्तार की आवश्यकता तो निरंतर बनी रहेगी। जिसके लिए आम नागरिकों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को सजग रहना होगा।
       

            

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